अहीर गवली समाज अहिरात 

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अहीर वर वधू परिचय मच

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मेरा नाम भूषणनंद यादव है और  मैं जालना में रहता हूँ और  मेरे पिता का नाम पारसनंद यादव और माता का नाम मालतीनंद यादव है और हम चार भाई बहन है। मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूँ।  सब मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मैं रोज सुबह 5 बजे उठकर सैर के लिए जाता हूँ और आकर ऑफीस के लिए तैयार होता हूँ। मैं रोजाना युनिफॉर्म पहन कर ऑफीस जाता हूँ और मैं रोज का कार्य रोज ही करता हूँ क्योंकि मुझे सभी कार्य समय पर करने की आदत है। मैं समयनिष्ठ और अनुशासनप्रिय हूँ जिस वजह से मैं ऑफीस में भी सभी का प्रिय हूँ। मैं पढ़ाई लिखाई में भी अच्छा हूँ साथ ही खेल कूद में भी दिलचस्पी रखता हूँ और फुटबोल मेरा प्रिय खेल है। मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना अच्छा लगता है और मैं हर बार नाच गाने और लघु नाटक में भाग लेता हूँ। मुझे कार चलाना बहुत पसंद है  पर मैं घर से दो किलोमीटर मेरे ऑफीस तक मोटर साइकल पर जाता हूँ। शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ समय बिताना पसद करता हो 


भूमिका- मनुष्य जीवन अनेक प्रकार की भावनाओं और कल्पनाओं, आशा और आकांक्षाओं के भावावेगों में झूलता रहता है। दु:ख और निराशाओं, संकट ओर संघर्षों के जूझता-टकराता कभी सुख और दु:ख, कभी सफलता और कभी असफलता, कभी लाभ और कभी हानि का भी उसे सामना करना पड़ता है। इस प्रकार वह जीवन-यात्रा के सुगम अथवा बीहड़ मार्ग को पार करता है। भावनाओं का तथा आशाओं का इन्द्रधनुषी कोमल जाल उससे शैशव अवस्था से ही लिपटा रहता है। विशाल विश्व में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ही मनोवृत्ति और प्रवृत्ति होती है, उसकी रुचि और कामना भी अलग-अलग प्रकार की होती है। इसी सन्दर्भ के कारण किसी व्यक्ति को मीठा प्रिय लगता है और किसी को खट्टा ज्यादा रुचिकर प्रतीत होता है। एक व्यक्ति नमकीन पदार्थों को रुचिपूर्वक ग्रहण करता है तो दूसरा व्यक्ति इसे अरुचि से खाता है। रुचियों में प्रकृति, आयु तथा वातावरण का भी विशेष महत्व होता है। इसी प्रकार अपनी बुद्धि के अनुकूल भी व्यक्ति रुचियों का त्याग और ग्रहण करता है। वास्तव में किसी वस्तु के प्रिय और अप्रिय होने का विशेष कारण भी कभी-कभी मनु= की अपनी रुचि होती है।

   मेरी अभिरुचियों में अध्ययन तथा संगीत का विशेष स्थान है। अध्ययन के प्रति मेरी रुचि बढ़ने का एक विशेष कारण यह है कि हमारे घर में ही पारिवारिक वातावरण अध्ययन का रहा है। घर में बालकों के लिए शिक्ष बाद कहानियां, धार्मिक कहानियां, पंचतंत्र की कहानियां तथा ऐतिहासिक महापुरुषों की जीवनियों से संबंधित पुस्तकों के उपलब्ध होने के कारण मेरा इनके प्रति आकर्षण स्वाभाविक था। इ= प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर की सुन्दर छोटी-छोटी किताबों तथा सरल भाषा में रामायण और महाभारत की पुस्तकें होने से भी मैं उन्हें पढ़ने के लिए लालयित रहता। इनमें जो विशेष कथन, दोहा या कविता के अंश आदि होते मैं नोट करके उन्हें अपने पास रख लेता था। मेरी यह रुचि इतनी प्रबल थी कि मैं अपने स्कूल के बस्ते में भी इस प्रकार की एक पुस्तक अवश्य रख लेता तथा जब भी कोई वादन (पीरियड) खाली होता तो मैं अपनी उसी किताब को निकाल कर पढ़ने लग जाता। धीरे-धीरे मैं अपने विद्यालय के पुस्तकालय से भी किताबें लेने लगा। यह सत्य है कि आठवीं कक्षा तक मैं केवल कहानियों की ओर ही आकर्षित रहता। लेकिन इसी कक्षा में मैंने प्रेमचन्द, वृन्दावन लाल वर्मा तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के कुछ उपन्यास भी पढ़ लिए थे। इसके साथ ही गीतांजलि के प्रति मेरा आकर्षण हुआ लेकिन उसका हिन्दी अनुवाद भी सरलता से समझ में न आने वाला था


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