*क्या है श्री कृष्ण के अनेक नामों का भेद *
भगवान श्री कृष्ण विष्णु भगवान के ही एक अंश हैं। उन्होंने धरती पर मानव रूप में अवतार लिया था ताकि वह मनुष्य को जीवन जीने का सही मार्ग बतला सके। जब भगवान श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे तब उनके अनेक नाम हुए। जिससे आज उनके भक्त उन्हें पुकारते हैं। श्री कृष्ण के इन नामों का क्या भेद है आज जानते हैं। संजय ने धृतराष्ट्र को दिया इश्वर ज्ञान महाभारत युद्ध प्रारंभ होने से पहले संजय जिसे भगवान कृष्ण द्वारा दिव्य नेत्र प्राप्त थे उन्होंने धृतराष्ट्र को यह कहा था कि उनके पुत्र दुर्योधन गलत कह रहे हैं। उन्हें कृष्ण से युद्ध नहीं करना चाहिए। श्री कृष्ण तो साक्षात परम ब्रम्ह है। परंतु दुर्योधन ने उनकी बात नहीं मानी संजय धृतराष्ट्र के सेनापति भी थे। धृतराष्ट्र को उनकी बातों पर विश्वास था और धृतराष्ट्र उनसे ईश्वर का ज्ञान चाहते थे। जिस पर संजय ने उन्हें बतलाया मैंने श्रीकृष्ण के कुछ नामों की व्युत्पति सुनी है। उसमें से जितना मुझे स्मरण है वह सुनाता हूं। श्रीकृष्ण तो वास्तव में किसी प्रमाण के विषय नहीं है। समस्त प्राणियों को अपनी माया से आवृत किए रहने और देवताओं के जन्मस्थान होने के कारण वे वासुदेव हैं। व्यापक तथा महान होने के कारण माधव है। मधु दैत्य का वध होने के कारण उसे मधुसूदन कहते हैं। कृष धातु का अर्थ सत्ता है और आनंद का वाचक है। इन दोनों भावों से युक्त होने के कारण यदुकुल में अवर्तीण हुए श्रीविष्णु कृष्ण कहे जाते हैं। वह नित्य आलय और अविनाशी परमस्थान हैं इसलिए पुण्डरीकाक्ष कहे जाते हैं। दुष्टों के दमन के कारण जनार्धन है। उनमें कभी सत्व की कमी नही होती इसलिए सातत्व हैं। उपनिषदों से प्रकाशित होने के कारण वह आर्षभ हैं। वेद ही उनके नेत्र हैं इसलिए वह वृषभक्षेण हैं। वह किसी भी उत्पन्न होने वाले प्राणी से उत्पन्न नहीं होते इसलिए अज है। उदर इंद्रियोके स्वयं प्रकाशक और दाम उदर दमन करने वाले होने से वह दामोदर है। हृषीक वृतिसुख और स्वरूपसुख भी कहलाते हैं। ईश होने से वह हृषीकेश कहलाते है। अपनी भुजाओं से पृथ्वी और आकाश को धारण करने वाले होने से आप महाबाहु हैं। आप कभी अध क्षीण नहीं होते इसलिए अधोक्षज है। नरो के अयन यानी आश्रय होने के कारण उन्हें नारायण कहा जाता है। जो सबसे पूर्ण और सबका आश्रय हो उसे पुरुष कहते है। उनमें श्रेष्ठ होने से उत्पति को पुरुषोत्तम हैं। वह सत और असत सबकी उत्पति के स्थान हैं तथा सर्वदा उन सबको जानते हैं इसलिए सर्व हैं। श्री कृष्ण सत्य में प्रतिष्ठित हैं और सत्य से भी सत्य है। वे पूरे विश्व में व्याप्त है इसलिए विष्णु हैं जय करने के कारण विष्णु हैं नित्य होने के कारण अनंत हैं और गो इंद्रियो के ज्ञाता होने से गोविंद है।
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