कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को यानी आज गोपाष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। जैसा कि इसके नाम से पता चला रहा है, आज के दिन गौ माता की पूजा की जाती है। मान्यता है कि गाय की पूजा करने से 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। कथाओं में जानकारी मिलती है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गायों को चराना आरंभ किया था, इसी उपलक्ष्य में गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं गोपाष्टमी की कथा और जिस समय भगवान कृष्ण ने गाय को चराया था, उस समय उनकी उम्र क्या थी।
गोपाष्टमी की कथा
भगवान कृष्ण ने गोपाष्टमी से ही गौ चरण लीला की शुरुआत की थी। इसके पीछे के एक कथा मिलती है। कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण 6 वर्ष के हुए थे, तब उन्होंने अपनी मां यशोदा से कहा था कि मां अब हम बड़े हो गए हैं इसलिए आज से बछड़ों को नहीं बल्कि गायों को चराने जाएंगे। मैया यशोदा ने कहा कि ठीक है इसके लिए तुम पहले अपने बाबा से पूछ लेना।
गोपाष्टमी पूजा विधि
गोपाष्टमी के दिन गाय और बछड़ा का स्नान करवाकर उनका पूजन व श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद उनकी आरती उतारनी चाहिए और हाथ जोड़कर अभिवादन करना चाहिए। गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं इसलिए गौ पूजन करने से उन सभी देवताओं की स्वत: ही पूजा हो जाती है। इसके बाद गाय की पूरे परिवार के साथ परिक्रमा करनी चाहिए और हरा चारा खिलाना चाहिए। अगर घर में गाय नहीं है तो गाय को घर के मुख्य द्वार पर बुलाकर उनको स्नान कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गीता में भगवान कृष्ण स्वयं कहा है कि ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ अर्थात मैं गायों के बीच में ही रहता है। इस दिन गायों के साथ भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है। जिन बहनों के भाई नहीं होते हैं, वे इस दिन गायों को भाई दूज का तिलक लगाती हैं।
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