बजरंग बाण
बजरंग बाण की रचना संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने उस समय की, जब उनके ऊपर हर ओर से तंत्र आदि के माध्यम से प्रेत पिसाच भूत आदि के द्वारा आक्रमण किया जा रहा था। इन सबसे तुलसीदास जी अत्यंत पीड़ित होकर भगवान श्री हनुमान जी से प्रार्थना करने लगे। यही प्रार्थना है "श्री बजरंग बाण"।
बजरंग बाण हर प्रकार की भूत प्रेत आदि की बाधा से मुक्ति दिलाता है, एवम् ऐसे कार्य के लिए अमोघ अस्त्र के रूप में कार्य करता है, इसलिए इसका नाम बजरंग बाण है।
बजरंग बाण 4 चरणों में कहा गया है, जो इस प्रकार से है:
1. निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करें सनमान, तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करें हनुमान।। यहां पर ये बताया गया है की हनुमान जी किनके कार्य सिद्ध करते हैं। यानी निश्चय के साथ या संकल्प लेकर प्रेम पूर्वक जो विनय से झुककर श्री हनुमान जी से प्रार्थना करेगा, उसके सभी कार्य हनुमान जी स्वयं सिद्ध कर देंगे।
2. जय हनुमंत संत हितकारी सुन लिजै प्रभु विनय हमारी.... से लेकर।। लाह समान लंक जर गई, जय जय ध्वनि सुरपुर नभ भई।। यहां तक जो भाग में इसमें श्री हनुमान जी स्तुति की गई, उनकी महिमा का बखान किया गया है की कैसे उन्होंने सिंधु लांघा, सुरसा की परीक्षा पार करी, कैसे अक्षय कुमार का संघार किया, लंका विध्वंस किया, सीता माता का पता लगाया, विभीषण को सुख प्रदान किया।
जब हम अपने किसी बड़े से कोई कार्य सिद्ध कराते हैं तो पहले विधिवत उसकी महिमा कहते हैं उसे प्रसन्न करते हैं उसकी स्तुति करते हैं, यही नियम है और यही कार्य तुलसीदास जी ने किया है। एवम् हमे भी ये सदैव ध्यान रखना चाहिए की अपने से श्रेष्ठ के सम्मुख किस प्रकार से अपनी प्रार्थना रखनी चाहिए यही तुलसीदास जी ने हमें बताया है।
3. अब विलंब केही कारण स्वामी, कृपा करूह उर अंतर्यामी.... से लेकर।। अपने जन को तुरंत उबारो, सुमिरत होय आनंद हमारे।।
अब हनुमान जी की विधिवत स्तुति करने के उपरांत तुलसीदास जी ने अपनी समस्या श्री हनुमानजी को बताई है एवम् अपनी असमर्थता बताते हुए यहां पर समर्पण करते हुए श्री हनुमान जी को अनेक प्रकार से शपथ दिलाई की प्रभु दया करो, रक्षा करो, कल्याण करो। भूत, प्रेत, पिसाच, निशाचर, अग्निबेताल, काल, मारी, मार इन्हे मारने की शपथ दिलाई हनुमान जी को, पूजा, जप, तप, विधि विधान, आचार विचार कुछ नही जानता आपका ये दास, परंतु किसी अवस्था में भी आपके नाम से सहारे कही भी रह सकते हैं चाहे वन उपवन हो या कोई अन्य स्थान। अर्थात जब अपने श्रेष्ठ से, गुरु से माता पिता से अपनी समस्या या व्यथा बताता हो तो फिर पूर्ण रूप से बिना संकोच के सब बता देना चाहिए कुछ भी नही छुपाना चाहिए। एवम् प्रेमवश यदि शपथ भी देना पड़े तो इसमें भी कोई दोष नही है। यही तुलसीदास जी ने बताया है।
4. यह बजरंग बाण जेहि मारए ताहि कहो फिर कवन उबारय, पाठ करे बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की।।... से लेकर।। धूप देय जो जपे हमेशा, तन नही ताके रहे कलेशा।।
जैसा की अधिकतर स्तोत्र एवम् स्तुति में होता अंतिम में उसकी फलश्रृति कही गई है कि, बजरंग पाठ करने से क्या क्या लाभ होगा। बजरंग बाण पाठ करने वाले को भूत प्रेत आदि से भय नहीं होता, उसके शरीर के क्लेश समाप्त होने लगते हैं, एवम्
सबसे महत्वपूर्ण की जो बजरंग बाण का पाठ करेगा हनुमान जी उसके प्राणों की रक्षा अवश्य करेंगे।
🙏🙏🙏 जय श्री राम जय हनुमान 🙏🙏🙏
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