अहीर गवली समाज अहिरात 

LightBlog

अहीर वर वधू परिचय मच

..

Saturday, June 10, 2023

महाराज । बोले-"कौशल्या देखो वे दोनों आ गए"

इधर भरत जी ननिहाल में हैं, उधर अयोध्या में सुमंत्र जी भगवान को वन पहुँचा कर वापिस लौटे। संध्या हो रही है, हल्का प्रकाश है, सुमंत्र जी नगर के बाहर ही रुक गए। जीवन धन लुट गया, अब क्या मुंह लेकर नगर में प्रवेश करूं? अयोध्यावासी बाट देखते होंगे। महाराज पूछेंगे तो क्या उत्तर दूंगा? अभी नगर में प्रवेश करना ठीक नहीं, रात्रि हो जाने पर ही चलूँगा।
अयोध्या में आज पूर्ण अमावस हो गई है। रघुकुल का सूर्य दशरथ जी अस्त होने को ही है, चन्द्र रामचन्द्र जी भी नहीं हैं, प्रकाश कैसे हो? सामान्यतः पूर्णिमा चौदह दिन बाद होती है, पर अब तो पूर्णिमा चौदह वर्ष बाद भगवान के आने पर ही होगी।
दशरथ जी कौशल्या जी के महल में हैं, जानते हैं कि राम लौटने वालों में से नहीं, पर शायद!!! उम्मीद की किरण अभी मरी नहीं। सुमंत्र जी आए, कौशल्या जी ने देखकर भी नहीं देखा, जो होना था हो चुका, अब देखना क्या रहा?
दशरथ जी की दृष्टि में एक प्रश्न है, उत्तर सुमंत्र जी की झुकी गर्दन ने दे दिया। महाराज पथरा गए। बोले-
"कौशल्या देखो वे दोनों आ गए"
-कौन आ गए महाराज ? कोई नहीं आया।
-तुम देखती नहीं हो, वे आ रहे हैं।
इतने में वशिष्ठ जी भी पहुँच गए।
-गुरु जी, कौशल्या तो अंधी हो गई है, आप तो देख रहे हैं, वे दोनों आ गए।
-आप किन दो की बात कर रहे हैं, महाराज?
-गुरु जी ये दोनों तपस्वी आ गए, मुझे लेने आए हैं, ये श्रवण के माता-पिता आ गए।
महाराज ने आँखें बंद की, लगे राम राम करने और वह शरीर शांत हो गया।
विचार करें, ये चक्रवर्ती नरेश थे, इन्द्र इनके लिए आधा सिंहासन खाली करता था, इनके पास विद्वानों की सभा थी, बड़े बड़े कर्मकाण्डी थे। इनसे जीवन में एक बार कभी भूल हुई थी, इनके हाथों श्रवणकुमार मारा गया था, इतना समय बीत गया, उस कर्म के फल से बचने का कोई उपाय होता तो कर न लेते?
 

No comments:

Post a Comment

केंद्रीय राज्यमंत्री ना.रावसाहेब दानवे यांच्या हस्ते अध्यक्ष ब्रम्हानंद जांगडे व अहिर गवळी समाज नव

LightBlog